जहन्नुम की अप्सरा [Jahannum ki Apsra] by Ibn-e-Safi


जहन्नुम की अप्सरा [Jahannum ki Apsra]
Title : जहन्नुम की अप्सरा [Jahannum ki Apsra]
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ISBN : 8172238924
ISBN-10 : 9788172238926
Language : Hindi
Format Type : Paperback
Number of Pages : -
Publication : First published April 1, 1952

'जहन्नुम की अप्सरा' दुसरे महायुद्ध और हिटलर के फासीवाद के पृष्ठभूमि में रची गयी है|

इमरान अपने पिता के दबाव के कारण CID छोड़कर एक ऐसी कंपनी खोल लेता है जो औरतों को तलाक दिलाने का काम करती है| इसी सिलसिले में लेडी तनवीर इमरान से मिलने आती और इमरान को गजाली का पता चलता है| फिर गज़ाली कि हत्या हो जाती है और इमरान फैयाज़ कि मदद को आता है और फिर शुरू होता है तफतीस का सिलसिला|


जहन्नुम की अप्सरा [Jahannum ki Apsra] Reviews


  • Rajeev Roshan

    अभी हाल ही में न्यूज़-हंट पर ईबुक में इब्ने-सफी कि सभी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। सभी हिंदी में अनुवादित उपन्यास हैं। इब्ने-सफी अपने आप में एक ब्रांड नेम हैं। सुना है कि उन्हें हिंदी एवं उर्दू क्राइम फिक्शन का जनक माना जाता है। पहले वे भारत में ही कहानियां लिखा करते थे पर बाद में वे पाकिस्तान माइग्रेट कर गए और वहीँ से अपना पब्लिकेशन संस्था खोल कर अपनी कहानियां प्रकाशित करने लगे थे। आज भी भारत में उनके प्रशंसकों कि संख्या बहुत है। कई लेखक उनको पढ़-पढ़ कर ही लेखन के ऊँचे मुकाम पर पहुंचे हैं। वैसे तो मैं 2-3 किताबें उनके द्वारा लिखी गयी पहले भी पढ़ चूका था लेकिन आज उनकी किसी कहानी के बारे में लिखने कि सोचा है।

    “जहन्नुम कि अप्सरा” इस पुस्तक का नाम है जो कि अली इमरान सीरीज कि ५ वीं पुस्तक है। कई वर्षों बाद उनकी कहानी को हिंदी में छाप कर हार्पर कॉलिंस ने एक अलग ही दौर कि शुरुआत कर दी है। मेरे हिसाब से इब्ने-सफी के कई प्रशंसक हार्पर-कॉलिंस के इस कदम का स्वागत करते हैं। वहीँ ऑनलाइन पढने वाले पाठक भी बहुत ही आनंदित महसूस करते होंगे क्यूंकि अब हार्पर कॉलिंस से छपी सभी इब्ने-सफी कि पुस्तकें ईबुक में न्यूज़-हंट एप्लीकेशन पर उपलब्ध हैं।

    अब आते हैं कहानी कि ओर, अली इमरान जो कि सी.आई.डी. में एक जासूस है और अपनी बेवकूफाना हरकतों कि वजह से पुरे डिपार्टमेंट में बदनाम है। चूँकि उसके पिता सी.आई.डी. के डायरेक्टर हैं इसलिए उसको थोड़ी बहुत छुट भी मिली हुई है। लेकिन आखिरकार उसके पिता अपने कर्तव्य के आगे घुटने टेक देते हैं और अली इमरान को सी.आई.डी. छोड़ कर जाने का हुक्म सुना देते हैं। इमरान अपनी असिस्टेंट रुसी के साथ, सी.आई.डी. छोड़कर तलाक दिलवाने वाली संस्था खोल लेता है।

    अब इमरान के पास एक महिला का केस आता है जो एक खास व्यक्ति को देश से बाहर भेजना चाहती है। इमरान चाहकर भी उस महिला से यह बात नहीं निकलवा पाता है। इमरान उस व्यक्ति से बात करने जाता है तो उसे पता चलता है कि वह व्यक्ति तो किसी के लिए दरवाजा ही नहीं खोलता और अपने आपको कमरे में बंद करके रखता है। वहां कुछ पड़ोसियों से बात करके उसे पता चलता है कि कई बड़े लोग उससे मिलने के लिए आते रहते हैं लेकिन वह सभी के साथ समान ही व्यवहार करता है। इनमे से एक उस महिला का पति होता है जिसके केस पर इमरान कम कर रहा है।

    लेकिन इमरान अपनी हिम्मत नहीं छोड़ता और रात के वक़्त उस व्यक्ति को पकड़ लेता है और उसे उस महिला का सन्देश सुनाता है लेकिन वह व्यक्ति ऐसी ऐसी बातें कहता है जिसे इमरान नहीं समझ पाता। अगले दिन उस व्यक्ति कि लाश एक पार्क मिलती है। पोस्टमॉर्टेम के अनुसार उसके माथे में छोटे छोटे ज़हरीले कंकड़ मारे गए थे। यह क़त्ल का केस सी.आई.डी. के कैप्टेन फयाज को मिलता है। फयाज कभी भी बिना इमरान कि सहायता लिए खुद से कोई केस हल नहीं कर पाया था। इस बार भी वो इमरान के पास पहुँचता है और केस कि छानबीन करने के लिए कहता है।

    इमरान छानबीन करता है तो उसे एक ऐसे किरदार के बारे में पता चलता है जो अमूमन विदेशी इवेंट में देखा जाता है। फयाज कि मदद से उसे पता चलता है की शहर में एक विदेशी इवेंट कंपनी आई हुई जिसके साथ ऐसा किरदार हो सकता है। इमरान ऐसे ही इवेंट में जाता है जिसका नाम होता है “जहन्नुम कि अप्सरा”। इमरान को इस इवेंट कि टिकेट बहुत मुश्किल से मिलता है।

    धीरे-धीरे इमरान इस केस के अंत तक पहुँचता है जिसके लिए वह अपनी सूझ-बूझ का बखूबी इस्तेमाल करता है। इमरान की यह सूझ-बूझ सिर्फ पाठकों को ही नज़र आती है क्यूंकि कहानी के किरदारों के लिए तो इमरान एक जोकर है। आपनी बेवकूफाना हरकतों से आपके चेहरे पर कई बार मुस्कराहट लाने में वह कामयाब भी हो जाता है।

    नीलाभ के सम्पादन में प्रकाशित हुई ये कहानियां वही एहसास दिलाती हैं जो उर्दू में छपने पर सन ५० के दशक में कई पाठकों को हुई होगी। वैसे इब्ने-सफी की कहानियों की एक खास बात यह होती है की इनकी कहानी में कोई शहर नहीं होता या कोई क्षेत्र नहीं होता। इब्ने-सफी जी की कहानी बिना किसी शहर के आगे बढती जाती है। टैक्सी है, सड़के हैं, मकान है, फ्लैट है लेकिन कोई स्पेसिफिक क्षेत्र नहीं और कोई समय का भी फर्क नहीं पड़ता। उस समय लिखी इस कहानी को जब मैंने अब पढ़ा तो मुझे थोडा सा महसूस हुआ कि यह पुराने परिवेश में लिखी गयी कहानी है लेकिन एक बार रफ़्तार पकड़ने लेने के बाद तो यह बात महसूस ही नहीं हुई।

    आप सभी ने भी इब्ने-सफी की कई कहानियां पढ़ी होंगी। आशा है, आप मुझसे उपरोक्त लेख और इब्ने-सफी जी द्वारा लिखी कुछ किताबों के बारे में अपने विचार जरूर साझा करेंगे।

    आभार

    राजीव रोशन

  • Harshit Gupta

    Way more than the plot, I love the character safi had created.

  • Harshit Gupta

    Not that great, this one. A little surprising end, a little too much there.

  • Abu Muhammad

    Imran has resigned from his job and has now opened up a private detective office. In response to his advertisement a l’axe comes in and asks for a specific person to make sure that he leaves. While following the lead he finds out that the person has been killed and it’s not clear how the person died except that he was poisoned.
    This piques Imran’s interest more and he starts investigating further and during the investigation came across a dancing troupe who is booked to be performing all over Asia.
    On further investigation and with some help from his friend Captain Fayyaz, he follows the dancing troupe where they are torturing a local for some information. After some action sequences it is identified that the dancing troupe is actually a front for a black organisation. Who wants their agents to be placed I. All countries so they can have a total control after revolution.
    Imran takes all of them head on and just based on intelligence fouls their plans and everyone who is still standing gets arrested.
    The main antagonist of the movie the dancing leader who is of German origins indicating that I’m the black organisation is based out of Germany.
    Excellent jokes in between and as usual Ibn e Safi has done an excellent job of writing the story

  • विकास 'अंजान'

    'जहन्नुम की अपसरा' इमरान श्रृंखला का पाँचवा उपन्यास है जो हार्पर हिन्दी द्वारा प्रकाशित किया गया था।
    कथानक तेज रफ्तार है और पाठक को अंत तक बांधे रखता है। इमरान की हरकतें कई पाठक का मनोरंजन करती हैं। इमरान के किरदार का एक मुख्य विशेषता यह है कि वह खुद को बेवकूफ की तरह दिखलाता है। कई बार पाठक के रूप में मुझे उसकी हरकतों से चिढ़ हो जाती थी लेकिन इस उपन्यास में ऐसा नहीं है। उसकी बेवकूफी वाली हरकतें तो हैं लेकिन उनसे हास्य पैदा होता है और उन हरकतों के पीछे कोई न कोई कारण होता है।
    उपन्यास मुझे पसंद आया और इसे एक बार पढ़ा जा सकता है।
    उपन्यास के प्रति मेरे विस्तृत विचार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

    जहन्नुम की अप्सरा

  • Lily

    simply pointless..