
Title | : | মৃণালিনী |
Author | : | |
Rating | : | |
ISBN | : | 8179870235 |
Language | : | Bengali |
Format Type | : | Hardcover |
Number of Pages | : | 95 |
Publication | : | First published January 1, 1869 |
মৃণালিনী Reviews
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বঙ্কিমের সাম্প্রদায়িকতার সূচনা ঠিক এই যায়গা থেকে। ঐতিহাসিক উপন্যাস আমার সবচেয়ে পছন্দের। সেই হিসেবেই এটা বাদ দেওয়ার মতো না। কিন্তু ঘুরেফিরে সেই একই টাইপের পরিবেশ বা উদ্দেশ্যকে কেন্দ্র করেই লিখিত। মুসলমান শক্তির কবলমুক্ত হয়ে স্বাধীন হিন্দু রাজ্য প্রতিষ্ঠা করা। আর তাই দেখা যায় ‘ইখতিয়ার উদ্দিন বিন বখতিয়ার খিলজি’-র নবদ্বীপ বিজয়কে বঙ্কিম মোটেই মেনে নিতে পারেন নি। এ উপন্যাসের মাধবাচার্যকে দিয়ে হেমচন্দ্রকে আশ্বাস দিয়েছেন এইভাবে-
‘‘বৎস! দুঃখিত হইও না। দৈব নির্দেশ কখনো বিফল হইবার নহে। আমি যখন গণনা করিয়াছি যে, যবন পরাভূত হইবে, তখন নিশ্চয় জানিও তাহারা পরাভূত হইবে। যবনেরা নবদ্বীপ অধিকার করিয়াছে বটে, কিন্তু নবদ্বীপ তো গৌড় নহে। প্রধান রাজা সিংহাসন ত্যাগ করিয়া পলায়ন করিয়াছেন। কিন্তু এই গৌড় রাজ্যে অনেক করপ্রদ রাজা আছেন, তাহারা তো এখনও বিজিত হয়েন নাই। কে জানে যে, সকল রাজা একত্র হইয়া প্রাণপন করিলে যবন বিজিত না হইবে’’?
‘মৃণালিনী’ উপন্যাস প্রসঙ্গে সুপ্রিয় সেনের একটা অভিমত প্রকাশ করি। ‘উনবিংশ শতাব্দীর স্বদেশ চিন্তা ও বঙ্কিমচন্দ্র’ গ্রন্থে যথার্থভাবেই তিনি বলেছেন, ‘হিন্দুর স্বদেশপ্রীতি জাগ্রত করার জন্য বঙ্কিম বখতিয়ারকে মিথ্যাবাদী, কুচক্রী ও ভন্ড করে এঁকেছেন। এবং অন্তিম আশার সঞ্চার করেছেন, পশ্চিম দেশীয় বণিক কর্তৃক ‘যবন’ রাজত্বের অবসানের সম্ভাবনার কথা বলে।
‘এর সঙ্গে মুসলমান বিরোধ��� বীরত্বের এক হাস্যকর রুপায়ন আছে যখন হেমচন্দ্র নগর মধ্যে একা প্রচুর মুসলমান সৈন্যর সঙ্গে যুদ্ধ করে অবিজিত থাকেন’। সুপ্রিয় সেনের সঙ্গে এ ব্যাপারে শতাংশ পরিমাণ সহমত করেই বলতে হয়- হিন্দুরাজ্য পুনরুদ্ধার করার মানসিকতা নিয়ে হিন্দু মুসলমানদের সম্পর্ককে বঙ্কিম তিক্ত করার চেষ্টা এখান থেকেই শুরু করেছেন। -
মৃণালিনী সাহিত্যসম্রাট বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়ের তৃতীয় উপন্যাস। প্রকাশকাল ১৮৬৯। এই উপন্যাসেই প্রথম স্বদেশপ্রেমকে বিষয়বস্তু করেছিলেন বঙ্কিমচন্দ্র। এই উপন্যাসটি বঙ্কিমচন্দ্র আলিপুরে থাকাকালীন রচনা করেছিলেন। বইটি উৎসর্গ করেছিলেন বন্ধু তথা বিশিষ্ট নাট্যকার দীনবন্ধু মিত্রকে।
মৃণালিনী মাগধের রাজপুত্র হেমচন্দ্রের প্রেমে পড়েছেন যখন মাগধ যবনদের দখলে ছিল এবং সেই সময় হেমচন্দ্র মৃণালিনীর সাথে ছিলেন। শিক্ষক মাধবাচার্য হেমচন্দ্রকে বলেছিলেন যে তিনি মাগধের শেষ শাসক হওয়ায় মাগধকে যবন থেকে মুক্তি দিতে পারেন। হেমচন্দ্র যবনদের সাথে যুদ্ধের প্রস্তুতির দিকে পদক্ষেপ নিয়েছিলেন। এদিকে মাধবাচার্য কুটিলভাবে মৃণালিনীকে গৌগৌড়ে প্রেরণ করলেন। মৃণালিনীর স্মৃতির কারণে হেমচন্দ্র কাজে গতি বজায় রাখেন না। মৃণালিনীর স্মৃতি তাঁকে বার বার অত্যাচার করছে। মাধবাচার্য মৃণালিনীর ঠিকানা দেওয়া অস্বীকার করলে হেমচন্দ্র রেগে গিয়েছিলেন। ক্রোধে হেমচন্দ্র মাধবাচার্যের উপরে আক্রমণ করার জন্য তরোয়াল বের করে নিলেন। হেমচন্দ্র মাধবাচার্যকে তাঁর কথা দিয়েছিলেন যে তিনি দেশকে মুক্ত করার জন্য কাজ করবেন তবে মৃণালিনীর তথ্যের পরে। মাধবাচার্য তাকে ঠিকানাটা বলেছিলেন।
তারপরের কাহিনী বিস্তৃত। না উপন্যাস ততোটা বড় না। কিন্তু কাহিনীর বিস্তৃতি অনেক। একে একে কাহিনীতে যোগ হয় গিরিজায়া, ব্যোমকেশ, পশুপতি, মনোরমাদের সাথে।
আগে বঙ্কিমচন্দ্রের দুইটা উপন্যাস পড়া আছে। সে অনুযায়ী এটা খুব বেশি অনন্য না। বঙ্কিম মুলত ত্রিকোন প্রেম, যুদ্ধ, ইতিহাস নিয়ে এবং মিশ্রন করে উপন্যাস লেখেন। সব যদিও পড়া হয়নি তবে ৩ টা পড়ার পর এমনই মনে হলো। ইংরেজদের সাহিত্য বা বিশ্বসাহিত্যের প্রভাব অনেক তার লেখনীতে। থাকাটাই স্বাভাবিক।
মৃণালিনীতে কিছু কিছু ক্ষেত্রে ভিন্নতা আছে আগের লেখা দুই উপন্যাস থেকে। আর কাহিনী বর্ণনায় প্রথম থেকেই অদ্বিতীয় তিনি। কোনো বিরক্তিভাব আসার প্রশ্নই ওঠেনা। চেনা চেনা গল্প, বা একই ধারার গল্প মনে হলেও (পড়ার সময়) বই রাখা যায়না হাত থেকে। জানতে ইচ্ছে করে মৃণালিনীর কী হল! মনোরমার কী হবে, বা পশুপতিরই বা ভাগ্য কী। জানতে ইচ্ছে করে হেমচন্দ্র কী পারবে তার ইচ্ছে অনুযায়ী এগোতে? এইযে তাদের ভেতরকার টানাপোড়ন এসবই বা কিভাবে শেষ হবে!
শুধু তখনকার সমাজে না আজকের সমাজেও অন্তত ভারতবর্ষে নারীরা আজও দাসীর মতোই। যেন নারীদের জন্মগত অধিকার দুঃখভোগ করা। জন্মথেকেই বর হিসেবে তারা অবহেলা সহ্য করার ক্ষমতা পেয়েছে। শত শত অবহেলা, উপেক্ষা, কটাক্ষ সহ্য করে হলেও তাদের টিকে থাকতে হবে। না, প্রেম, ভালোবাসা সবকিছু দিয়েই গড়া মানব জিবন। কিন্তু বঙ্কিমচন্দ্রের দেখানো প্রেমে শুধু নারীরা জয়ী না হয়েও জয়ী। যেখানে পদে পদে পুরুষ প্রেমিক অবজ্ঞা করতে ছাড়েনা সেখানে নারীরা যেন সবকিছু কত সুন্দর করে গুছিয়ে নিয়ে থাকে। হিন্দুধর্মের অনেক মিসকন্সেপশনের মধ্যে সতীদাহ প্রথা অন্যতম। কেমন করে এত কষ্টকর জিনিসকে মানুষ মানুষের উপর চাপায়তে পারে? বঙ্কিম এখানে পক্ষপা��িত্ব করেননি। তিনি বরং যেভাবে সেসময়ের সমাজ চলত সেভাবেই দেখিয়েছেন। কী এক বিরহপীড়িত সমাপ্ত হলো মনোরমার!!
গল্পের দৃঢ়তা, একটু খানি সাসপেন্স, প্রেম, বিরহ সব কিছু মিলায়ে চমৎকার উপন্যাস। ট্রাজেডি এখানেও আছে যেমনটা তার আগের উপন্যাস গুলোতেও বিদ্যমান তবে এটাতে একটু হলেও সুখের আবেশ আছে যেটা অমুল্য। অন্তত এটাতে তিনি কিছু আশা, আকাঙ্খা বা স্বপ্ন দেখার মতো কিছু রেখেছেন ভবিষ্যতের জন্য। -
ঐতিহাসিক উপন্যাস লেখায় বঙ্কিমচন্দ্রের কোনো তুলনা নেই। মৃণালিনী উপন্যাসটা তুর্কিশ রক্তপিপাসু বর্বর বখতিয়ার খলজীর বাংলা আক্রমণের সময়ের প্রেক্ষাপটে লেখা হয়েছে। (খলজীর নাম আসলেই মনে পড়ে সেসময়ের বিশ্বের অন্যতম শ্রেষ্ঠ বিদ্যাপীঠ নালন্দা বিশ্ববিদ্যালয়ের কথা, খলজী সেই বিশ্ববিদ্যালয় পুড়িয়ে দেয়, হত্যা করে শিক্ষার্থীদের। আরো দু:খজনক ব্যাপার হলো শুধুমাত্র ধর্মীয় পরিচয়ের কারণে তাকে বাংলাদেশের মানুষ চিনে মহান মুসলিম বীর হিসাবে)।
বইয়ের মূল প্লট এক রাজপুত্রের প্রেমকাহিনীতে কেন্দ্র করে, কাহিনীটা এখন কিছুটা 'ক্লিশে' ম��ে হলেও এটাও মনে রাখতে হবে বঙ্কিম বাংলা সাহিত্যের প্রথম ঔপন্যাসিক, যখন বাংলা গদ্য শৈশবে পা দিয়েছে সেসময় এরকম উত্তেজনাপূর্ণ, সুখপাঠ্য একটা উপন্যাস লেখা বিশাল কৃতিত্বের ব্যাপার। তবে বঙ্কিমচন্দ্র নিজেও যে হিন্দু ধর্মের বর্বর কিছু প্রথা থেকে বের হয়ে আসতে পারেননি সেটার পরিচয় তার অন্যান্য বইয়ের মতো এই বইতেও পাওয়া যায়। -
अपने "बुक शेल्फ" में नई किताब की खोज में एक दिन ये किताब मिली। मुझे याद नहीं ये किताब मेरे पास कहां से आई। किताब पुरानी है और इसमें लिखी कहानी भी। पुरानी हिंदी कहानियों की एक विशेषता होती है। इनमें उस हिंदुस्तान का ज़िक्र होता है जिसके तौर तरीकों में पाश्चात्य सभ्यता की मलिनता नहीं। वो प्राचीन हिंदुस्तान जो अंग्रेजों से अनछुआ था।
इस किताब को और ऐसी अन्य किताबों को, जिनमें भारत वर्ष के इतिहास पर आधारित कहानी हो, पढ़ते समय ये ध्यान में रखना आवश्यक है कि ये किताब किस समय में और किस समय के बारे में लिखी गई है। इसके लिखने में झलकती हुई सोच को आज की परिस्थितियों से तोलना अथवा इससे प्रेरित हो इसके लेखन को आंखें मूंद कर अपने जीवन में धारण करना - दोनों ही अन्याय एवं अपराध हैं।
उपर्युक्त बात का ध्यान रखते हुए ही आगे की ये समीक्षा पढ़ी जाएगी - इस उम्मीद के साथ मै किताब के विषय में अपने विचार यहां लिखती हूं।
"मृणालिनी" बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ऐसा उपन्यास है जिसमें ना केवल हिन्दुओं एवं मुगलों के बीच राज्य को पाने हेतु संघर्ष का विवरण है, अपितु प्रेम कथा भी है। हालांकि किताब के नाम में केवल एक ही स्त्री का नाम आया है, किन्तु कहानी में दो अलग प्रेम कथाओं के बारे में लिखा गया है। पहली - मृणालिनी और हेमचंद्र की प्रेम कथा, जिसका अंत सुखद होता है और दूसरी - मनोरमा और पशुपति की प्रेम कथा, जिसके अंत में सुख और दुख दोनों का ही अंश है।
बंकिम चन्द्र जी ने जिस प्रकार दोनों प्रेम कथाओं एवं ऐतिहासकि राज्य संघर्ष को एक साथ एक ही किताब में सुंदरता से बांध कर रखा है, वह प्रशंसनीय है। किताब के किसी भी क्षण में ऐसा प्रतीत नहीं होता कि प्रेम कथा और इतिहास को एक साथ लिखने के कारणवश कहानी की निरंतरता भंग हुई हो। इतने तत्व होने के बावजूद भी यह किताब खुद में रहस्य एवम् अनेपक्षित मोड़ को समेटे हुई है - जिसने इस किताब की सुंदरता को और उभारा है।
यदि आप हिंदी साहित्य में रुचि रखते हैं तथा प्राचीन हिंदुस्तान की तरफ विशेष प्रेम रखते हैं, तो इस किताब को अवश्य पढ़ें। -
I have chosen this book because I liked Bankim Chandra Chattopadhyay's writings a lot. Reading him once made me urge for more. Best part of Bankim ji is that he always kept his novels full of better image of India how she was in those days actually. That clean image of country must be put forward for all to know that we were not only recognised by just English but our own native, ground-level leaders, be it in 'Poison Tree' or in 'Anandmath'.
His works are so simple and easy to read for any category & age of readers. He had always been very throughout in his writings about the incidences happened then.
This book is about a girl 'Mrinalini' who was in love with the prince Hemraj of Magadha who once saved her from drowning in the river. They later married in hiding but were stayed away from each other due to societal norms. She met him eventually in the end of the story, clearing many misunderstandings, which were evoluted to kept them more farther.
There is one another story of Manorma & Pashupati. This was ended profoundly in pain & disguise. Never expected to read such an endurance for every thing was going well for both of them, except that Pashupati paid for his karmas of cheating his nation.
Both stories were full of love and pain & equally bonded with the struggles of saving nation(today's region as per that time) from Bakhtiyar Khalji & his confederate brutal invaders(Mlecchas & yavanas).
I must say every lover of Hindi Langugee must keep such books in their home library and read them to know better image of Hindi Literature, ever since these existed. Writers like Bankim Ji, Munsi Premchand, Sharat Chandra Chattopadhyay, Devkinanadan Khatri, Dharmvir Bharti, 'Nirala', Jaishakar Prasad, Mahadevi Verma, etc. are worth reading.
For me it is 4.5/5.0
Hindi Translation (हिंदी अनुवाद):
मैंने इस किताब को इसलिए चुना है क्योंकि मुझे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की रचनाएँ बहुत पसंद हैं। उन्हें एक बार पढ़कर मैंने और अधिक के लिए आग्रह किया। बंकिम जी की सबसे अच्छी बात यह है कि वे हमेशा अपने उपन्यासों को भारत की बेहतर छवि से भरे रहते थे, जैसे की वास्तव में वह उन दिनों थी। देश की उस स्वच्छ छवि को सबके सामने लाना होगा कि हम सिर्फ अंग्रेजों से ही नहीं बल्कि अपने ही मूलनिवासी, जमीनी स्तर के नायको से पहचाने जाते थे, चाहे वह 'जहर वृक्ष' में हो या 'आनंदमठ' में।
उनकी रचनाएँ इतनी सरल हैं और पाठकों की किसी भी श्रेणी और आयु के लिए पढ़ने में आसान हैं। वह अपने लेखन में हमेशा उन घटनाओं के बारे में बताते रहे जो तब घटित हुई थीं।
यह किताब एक लड़की 'मृणालिनी' के बारे में है जो मगध के राजकुमार हेमराज से प्यार करती थी, जिसने एक बार उसे नदी में डूबने से बचाया था। बाद में उन्होंने छिपकर शादी कर ली लेकिन सामाजिक मानदंडों के कारण वे एक-दूसरे से दूर रहे। वह अंततः कहानी के अंत में उससे मिलीं, जिससे कई गलतफहमियाँ दूर हुईं, जो उन्हें और अधिक दूर रखने के लिए विकसित हुई थीं।
मनोरमा और पशुपति की एक और कहानी है। यह गहरा दर्द और आशा में समाप्त हो गयी थी। इस तरह की तितिक्षा को पढ़ने की ���भी उम्मीद नहीं की गई थी क्योंकि उन दोनों के लिए सब कुछ अच्छा चल रहा था, सिवाय इसके कि पशुपति ने अपने राष्ट्र को धोखा देने के अपने कर्मों का भुगतान किया।
दोनों कहानियाँ प्रेम और पीड़ा से भरी थीं और बख्तियार खिलजी और उसके सहयोगी क्रूर आक्रमणकारियों (म्लेच्छों और यवनों) से राष्ट्र (उस समय के अनुसार आज का क्षेत्र) को बचाने के संघर्ष से समान रूप से जुड़ी हुई थीं।
मुझे कहना होगा कि हिंदी भाषा के प्रत्येक प्रेमी को अपने घर के पुस्तकालय में ऐसी किताबें रखनी चाहिए और जब से ये अस्तित्व में हैं, हिंदी साहित्य की बेहतर छवि जानने के लिए उन्हें पढ़ना चाहिए। बंकिम जी, मुंशी प्रेमचंद, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, देवकीनंदन खत्री, धर्मवीर भारती, 'निराला', जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा आदि लेखक पढ़ने योग्य हैं।
मेरे लिए यह 4.5/5.0 है। -
बंकिम चंद्र जी ने खिलजी की मगध की जीत के बाद बंगाल पर चढ़ाई के ऐतिहासिक घटना को एक प्रेम कहानी के माध्यम से चित्रित किया है l मगध के हारे राजकुमार हेमचन्द्र को ये निश्चित करना है कि जीवन कि सार्थकता किसमें है देशभक्ति में या मृणालिनी के प्रति उसके प्रेम में I उसके गुरु उससे प्रेम का त्याग कर यवनों को हराने के लिए अपने सर्वस्व कि आहुति देने कि प्रतिज्ञा चाहते हैं I दूसरी ओर मनोरमा मगध के राजमंत्री पशुपति को निजि लाभ के कुकर्म से बचा कर रामभक्ति के मार्ग पर लाने की कोशिश करती है I
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সুপাঠ্য বলব। গল্প ভাল। কিন্তু উনার মানসিকতা একদম নারীদের বিরুদ্ধে। নারীকে দাসী করে রাখার স্লোগান এটা। যখন সতীদাহ প্রথা বাদ হয়ে যাচ্ছিল তখন এই উপন্যাসে সেই জঘন্যতম প্রথার কথা লেখা হয়েছে।
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#বইঃ মৃণালিনী
#লেখকঃ বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়
#প্রধান_চরিত্র - মৃণালিনী, হেমচন্দ্র, মনোরমা ও পশুপতি
#ধরন -চিরায়ত উপন্যাস
#প্রকাশনায় - জনতা প্রকাশ
#মুদ্রিত_মূল্য - ১০০ টাকা
#কিছু_কথাঃ
ঈশ্বর মানুষকে পাঠাইবার সঙ্গে সঙ্গে সুখ ও ��ুঃখ কে সঙ্গী করিয়া অর্পন করিয়াছেন। কিন্তু মনুষ্য জাতি ঈশ্বর প্রদত্ত এই দুইয়ের মধ্যে কেবল সুখ কেই হৃদয়ঙ্গম করিয়া বাচিবার প্রয়াস করে। তাহা হইলে দুঃখকে বরণ করিবে কে? অনিচ্ছা সত্তেও কেহ দুঃখে পরিলে খুব সহযেই একটা মুক্তির পথ খুজিয়া লইতে চায়। তন্মদ্ধে বেশির ভাগ মানুষইতো দুঃখের পরিবর্তে যমালয়কেই মুক্তির পথ হিসাবে মানিয়া লয়। ভয়ে ভীত হইয়া আত্মবিশর্জন করিতে সর্বোচ্চ চেষ্টা অব��যাহত রাখে। কিন্তু কেহ কি ইহা বলিতে পারে সে স্থান তো আছেই যখন ইচ্ছা তখনই যাইতে পারিবে, এখন কেন আর এক স্থানে যাওনা?
#বই_আলোচনাঃ
হ্যা, আলোকপাত করিবো তাহাদের লইয়া, যাহাদের কে অবলম্বন করিয়া পুস্তকখানি রচিত। ততকালিন সময়ে যবনের সহিত হিন্দুদের যুদ্ধ আরম্ভ হইয়াছিলো। বখতিয়ার খিলজী হিন্দুদের বিনাস করিয়া মুসলমান রাজ্য স্থাপনের ব্রত গ্রহন করিয়াছিলেন। সফলতার সহিত তাহা সম্পন্নও করিতেছিলেন। কিন্তু গ্রন্থখানির মূল উদ্দেশ্য যুদ্ধ বিগ্রহ উপস্থাপন করা নয়।
হেমচন্দ্র, গুরু মাধবচন্দ্রের দিক্ষায় দিক্ষত হইয়া যবনবধে সংকল্পবদ্ধ হইয়াছি���েন। কিন্তু তাহাতে বাধ সাধিলে প্রেম। হেমচন্দ্র প্রাণাধিক ভালোবাসিত মৃণালিনীকে। কিন্তু গুরুর নির্দেশ। যতক্ষন নিজ কার্জ সম্পাদন না হইবে ততক্ষন মৃণালিনীর দর্শন হইতে বঞ্চিত হইতে হইবে। হেমচন্দ্র কেমন করিয়া মানিয়া লইবে এই বিচ্ছেদ?
অন্যদিকে, হেমচন্দ্র গুরুবাক্য নিজমধ্যে ধারন করিয়া মৃণালিনী কে রাখিয়া গৌড় রাজ্যে আসিয়া উপস্থিত হইলো, আশ্রয় হইলো মনোরমার গৃহে। এ সেই মনোরমা যাহার সৌন্দর্যময় রুপ ও গুন লইয়া লেখক একখানা পরিচ্ছেদ রচনা করিয়াছেন। একদিকে মৃণালিনীর বিয়োগ অন্যদিকে মনোরমার আশ্রয়, কি ঘটিতে চলিয়াছে?
পাঠকগন পাঠপূর্বক জ্ঞ্যাত হইবেন, মনোরমার বয়স একদমই কম এবং অল্প বয়সে বিধবা, কিন্তু তাহা সত্ত্বেও
পশুপতি তাহাকে লাভ করিতে চায়। কে পশুপতি? এতকিছু উপস্থাপন করিলে পুস্তক পাঠে আবশ্যক কেন?
গৌড় রাজ্য যবনের হস্তগত হইলো পশুপতির সহায়তায়। যবনের সহিত সন্ধি করিয়াছিলো রাজ্য জয় করিয়া বখতিয়ার খিলজী পশুপতিকে রাজা করিয়া সিংহাসনে আধিষ্ঠা করিবে। কিন্তু রাজ্যলাভ করিয়া পশুপতি কে কারারুদ্ধ করিয়া দিলো। মো. আলির সহায়তায় মুক্তি লাভ করিলো ঠিকই কিন্তু ইহাই যে তাহার চিরমুক্তির দিকে ধাবিত করিবে তাহাতো পাঠকগন ভাবিতেও শঙ্কাবোধ করিবে।
কি ঘটিয়াছিলো তাহার সহিত? হেমচন্দ্রর সহিত কি মৃণালিনীর সাক্ষাত হইয়াছিলো? পারিয়াছিলো কি হিন্দু রাজ্য স্থাপন করিতে? পশুপতি কি মনোরমাকে লাভ করিতে পারিয়াছিলো?
বস্তুত পুস্তকের নাম মৃণালিনী হইলেও মনোরমাকেই প্রধান বলিয়া মনে হইয়াছে। আপনারা কিভাবে গ্রহন করিবেন তাহা বলিতে পারিবোনা।
#উপলব্ধিঃ
কাননমধ্যে পথ চলিবার কালে পদাঘাত পাইয়া যদি বৃশ্চিকদংশন করিয়া বসে তবে সেই বিশাক্ত শরীর লইয়া কিছুপথ অতিক্রম করা যায়। কিন্তু মনুষ্যদংশনের বিষ অঙ্গে ধারন করিয়া ক্ষনকালের জন্যেও কিছুদূর অতিক্রম করা বৃথা প্রয়াস মাত্র।
প্রেমের ধর্মই কি পরিণয়ে বাধ সাধিয়া দেওয়া?
তাহা হইলে কি ধারনা করিয়া লইবো প্রেম পবিত্র নয়, প্রেম কলঙ্কিত, প্রেম কলুষিত।
যে প্রেম প্রশান্তির হুতাশনে হৃদয় দোলিত করিয়া তোলে, কোথায় সেই প্রেম? কোথায় সেই প্রশান্তি? সে কি কেবলই পুস্তকের মসৃণ পাতায় লুক্কায়িত?
#বিঃ_দ্রঃ পুস্তকে রচিত কষ্টের কথা গুলো উন্মুক্ত করিতে পারিলামনা। মৃণালিনীর দুঃখে পাঠকগন স্থীর থাকিলেও মনোরমার কথায় পাঠকগনের সজল নয়নে বোধকরি ঢেউ উঠিবে। ইহা কাম্য নয়। বিবেচনা বশত তাহা ব্যাক্ত হইতে নিজেকে বিরত রাখিলাম।
পরিশেষে পাঠকগন পুস্তকখানা পাঠ করিবেন জানিয়া ইতি টানিয়া দিলাম। -
"Mrinalini" is a captivating novel by Bankimchandra Chatterjee that takes readers on a journey of self-discovery and personal growth. Set in the backdrop of early 20th-century Bengal, the story revolves around the eponymous character, Mrinalini, as she navigates the complexities of love, marriage, and societal expectations.
Chatterjee's writing style is engaging, drawing readers into the world he has created. The narrative beautifully captures the emotions and dilemmas faced by Mrinalini, making her relatable and compelling. Through vivid descriptions and well-drawn characters, Chatterjee delves into the human psyche, exploring themes of identity, desire, and the constraints imposed by societal norms.
One of the strengths of "Mrinalini" lies in its character development. Mrinalini is a multi-dimensional protagonist who evolves and challenges societal expectations throughout the story. The supporting characters, too, are intricately woven into the narrative, adding depth and complexity to the overall plot.
The novel's exploration of love and marriage is particularly noteworthy. Chatterjee deftly examines the intricacies of relationships, capturing the nuances of human emotions. He navigates the tensions between personal desires and societal obligations, inviting readers to reflect on the choices individuals make in the pursuit of happiness.
Furthermore, "Mrinalini" serves as a reflection of the social and cultural context of its time. Chatterjee sheds light on the traditions, customs, and values prevalent in early 20th-century Bengal, providing readers with a deeper understanding of the society in which the characters exist.
This is a captivating novel that explores themes of love, marriage, and personal growth in early 20th-century Bengal. Chatterjee's engaging writing style, well-developed characters, and insightful exploration of societal expectations make it a compelling read. Whether you are a fan of Bengali literature or enjoy thought-provoking narratives, "Mrinalini" offers a rewarding literary experience. -
সে অনেক আগের কথা। ক্লাস 3 কি 4 এ পড়ি। একদিন বাসার বুকশেলফ থেকে বাবার একটা বই নামিয়ে নিলাম। বই এর নাম "আনন্দমঠ"। ওই বয়সে বইয়ের নাম দেখে ধারণা হলো বেশ আনন্দ নিয়ে পড়া যাবে। বইয়ের প্রচ্ছদে একজন পাগড়ি মাথায় ভদ্রলোকের ছবি। ছবিটি যে স্বয়ং বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায় এর তাও ঐ বয়সে অজ্ঞাত। যাই হোক অনেক কষ্টে দুপাতা পড়ার পর বুঝলাম এ বেশ দুর্বোধ্য। আমার বোঝার সাধ্যাতীত। স্বাভাবিকভাবেই তখন অনাগ্রহ বশত বইটি রেখে দিলাম পূর্বনির্ধারিত স্থানে। সেই থেকে মনে হয় বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়ের লেখনীর প্রতি ভীতি তৈরি।
এর কয়েকবছর পর পাঠ্যক্রমে অন্তর্ভুক্ত হল বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়ের একটি ছোট প্রবন্ধ। যতদূর মনে পড়ে, সেই প্রবন্ধের সারমর্ম ছিলো এই - সকলের বোধগম্য সাহিত্যই সর্বোৎকৃষ্ট। পড়তে গিয়ে মনে তখন প্রশ্ন জাগলো - আমি কেন আপনার লেখনী পড়ে বুঝতে পারলাম না। এর কয়েক বছর পর পড়লাম "কমলাকান্তের জবানবন্দি" তাও পাঠ্যবই এর বদৌলতে। লেখক পরিচিতি পড়তে গিয়ে পরিচিত হলাম লেখকের আরও বেশকিছু বইয়ের নামের সাথে । দেবীচৌধুরানী, কপালকুণ্ডলা, বিষবৃক্ষ, মৃণালিনী, কমলাকান্তের দপ্তর। সে যাই হোক বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়ের উপন্যাস পড়ার মত সাহস তখনও তৈরী হয় নি। এরপর একবার বইমেলা থেকে "কমলাকান্তের দপ্তর" বইটি কিনলাম। কিন্তু পড়ার অনাগ্রহে সেটি ও বইয়ের স্তুপের নিচেই চাপা পড়ে রইলো ।
হঠাৎ কয়েক বছর আগে সুনীল গাঙ্গুলির "প্রথম আলো" তে সেই সময়ের বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায় সম্পর্কে পড়তে গিয়ে উনার লিখা কিছু বই পড়ার আগ্রহ হলো। সেই আগ্রহ যে খুব বেশি স্থায়ী হলো তা ও না।
ইবুক অ্যাপসের ফ্রী বুকলিস্টের সাজেশন এ বইটি না থাকলে হয়তো কখনো বঙ্কিমবাবুর কোনো বই'ই পড়া হতো না।
কালের রথে মানুষের জীবনযাত্রা কিংবা চিন্তা চেতনার পরিবর্তনকে অস্বীকার করার উপায় নেই। এই সময়ে বসে সেই সময়কার বিচার করতে যাওয়াটা ও অনর্থক। তারপর ও বলতে গেলে উপন্যাস এর চিত্রিত প্রেক্ষাপটে অনেক কিছুই ভালো লাগে নি। তা সত্ত্বেও বেশ তৃপ্তি নিয়েই পড়লাম। কোনো দুর্বোধ্যতা ও অনুভব করলাম না। সর্বোপরি সেই ভিতী ও দূর হয়ে গেলো পুরোপুরি। আর, এতটা তৃপ্তি লাগলো হয়তো এই কারনেই। -
मृणालिनी
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लेखक - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
प्रकाशन वर्ष - १८६९
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एक कदम लेखक की ओर
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बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय बंगला के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। उनकी लेखनी से बंगाल साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी उपकृत हुई है। उनकी लोकप्रियता का यह आलम है कि पिछले डेढ़ सौ सालों से उनके उपन्यास विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो रहे हैं और कई-कई संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं। उनके उपन्यासों में नारी की अन्तर्वेदना व उसकी शक्तिमत्ता बेहद प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त हुई है। उनके उपन्यासों में नारी की गरिमा को नयी पहचान मिली है और भारतीय इतिहास को समझने की नयी दृष्टि।
वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं।
मृणालिनी बंकिम दा द्वारा लिखा ��या तीसरा उपन्���ास था। यह उपन्याश प्रेम - प्रसंग पर आधारित था। इस उपन्यास की ख्याति ने बंकिम दा को प्रेम-प्रसंग पर आधारित उपन्यासों के लेखक की श्रेणी में बहुत ऊपर ला खड़ा किया था।
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सारांश
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हेमचन्द्र मगध का राज कुमार जिसके राज्य पर यवनों ने कब्ज़ा कर लिया था। और जब यवनों ने मगध पर आक्रमण किया उस समय हेमचन्द्र अपनी प्रेमिका "मृणालिनी" के पास था। लेकिन राज्य छीन जाने के पश्चात हेमचन्द्र के गुरु माधवाचार्य ने मृणालिनी को छल से कही और भिजवा दिया था। हेमचन्द्र गुस्से से अपने गुरु के पास जाता है। गुरु हेमचन्द्र को उसके जीवन का उद्येश समझाता है की उसे आपने देश मगध को यवनों से मुक्त करना है। वो इस कार्य पर ध्यान दे। हेमचन्द्र गुस्से में आपने गुरु पर तलवार वार करने के लिए तलवार निकल लेता है। लेकिन फिर गुस्से में आश्रम से निकल जाता है। हेम्चंरा फिर वापिस आ कर गुरु से कहता है की वो देवकार्य के लिए काम करेगा और यवनों से युद्ध भी करेगा पर पहले उसे बताया जाये की "मृणालिनी" कहा है। गुरु उसे मृणालिनी के बारे में बताते है यह वडा लेते हुए की जब तक देवकार्य पूर्ण नहीं हो जाता या जब तक यवनों को मगध से भगा नहीं दिया जाता वो मृणालिनी से नहीं मिलेगा। गुरु के आज्ञा से हेमचन्द्र गौड़ देश के लिए रवाना होता है जिसकी राजधानी नवद्वीप में उसे गौड़ के रजा से मिलना है। गुरु जी की जानकारी के अनुशार "मृणालिनी" भी गौड़ देश में एक धनिक हिर्शिकेश के यहाँ रह रही थी। वो हिर्शिकेश के गाँव जाता है। वहां हेमचन्द्र एक भिखारन को "मृणालिनी" का पता लगाने का काम देता है। भिखारिन का नाम "गिरिजया" है। गिरिजया गीत गा गा कर मृणालिनी का पता लगा लेती है। मृणालिनी उसे हेमचन्द्र को यह सन्देश देने के लिए कहती है की हेमचन्द्र रात्रि को मिलने आये। गिरिजया जब हेमचन्द्र को मृणालिनी का सन्देश देती है तो हेमचन्द्र मिलने से इंकार कर देता है और एक पत्र गिरिजया को देता है मृणालिनी के लिए। तभी माधवाचार्य आ कर हेमचन्द्र को नवद्वीप के लिए ले जाते हैं। रात में गिरिजया मृणालिनी से मिलती है और पत्र देती है। पत्र के अनुसार हेमचन्द्र ने यह कहा था की उसने प्रतिज्ञा की है की जब तक गुरु जी का कार्य समाप्त न कर दे उस से मिल नहीं सकता। तभी "मृणालिनी" गिरिजया से कहती है की वो एक बार हेमचन्द्र को देखना चाहती है। लेकिन गिरिजया यह बताती है की कैसे माधवाचार्य हेमचन्द्र को आपने साथ नवद्वीप ले गए। मृणालिनी हिर्शिकेश के घर वापिस जाती है की तभी हिर्शिकेश का लड़का व्योमकेश उस पर जोड़ जबरदस्ती करना चाहता है तभी गिरिजया पीछे से आकर व्योमकेश को काट लेती है। व्योमकेश चिल्लाता है दर्द के मारे तो सभी घरवाले जग जाते हैं। हिर्शिकेश तभी मृणालिनी को घर के अन्दर भागते जाते हुए देखती है। हिर्शिकेश व्योमकेश से पूछते हैं की क्या हुआ तो व्योमकेश झूठ बताता है की की मृणालिनी किसी और पुरुष के साथ अभिसार करने गयी थी। इस पर हिर्शिकेश गुस्सा हो कर मृणालिनी को अपशब्द और बुरा कहते हैं इस पर मृणालिनी जवाब देती है - "मुझे कुलटा जो बता रहे हो सब झूठ है"
हृषिकेश क्रोधित होकर बोले, ‘‘पापिनी ! मेरे अन्न से पेट पालती है और मुझे ही दुर्वचन सुनाती है। जा, मेरे घर से इसी समय निकल जा, माधवाचार्य की खुशी की खातिर मैं अपने घर में काली नागिन नहीं पाल सकता हूं।’’
मृणालिनी बोली, ‘‘तुम्हारी आज्ञा के अनुसार ही तुम कल सवेरे मेरा मुंह नहीं देख पाओगे।’’
मृणालिनी हिर्शिकेश का घर छोर देती है तो गिरिजया उसे आपने घर में पनाह देती है। मृणालिनी गिरिजया को बताती है की वो नवद्वीप जाना चाहती है तो गिरिजया कहती है की वो भी साथ जायेगी। ��ृणालिनी और गिरिजया नवद्वीप पहुँचते हैं। गिरिजया गा गा कर पुरे राजधानी में यह पता लगाने की कोशिस करती है की हेमचन्द्र कहा है। गिरिजया को पता चलता है तो वो मृणालिनी को बताती है। लेकिन तभी माधवाचार्य आते हैं और मृणालिनी का वह हाल बताते हैं जो उन्होंने हिर्शिकेश के मुख से सुना था। यह बात सुनकर की मृणालिनी कुलटा है और उसके दुसरे पुरुषो के साथ भी सम्बन्ध है वह आग बबूला हो जाते हैं और मृणालिनी को मारने की कसम खता है। अगले दिन जब गिरिजया आती है तो हेमचन्द्र उसे भला बुरा कह भगा देते हैं पर गिरिजया के समझाने से समझ जाते हैं। हेमचन्द्र मृणालिनी से मिलने जाते हैं और उस से हिर्शिकेश के घर में घटी घटना के बारे में पूछते हैं, मृणालिनी उसे बताती है, आधी बात सुनते ही हेमचन्द्र आग बबूला हो मृणालिनी को छोड़ कर चले जाते हैं। मृणालिनी यह देख कर वो एक पत्र भेजती है हेमचन्द्र को पर हेमचन्द्र अहंकार और घमंड से चूर हो पत्र को फाड़ देते हैं। गिरिजया यह देखकर गुस्सा हो जाती है। उन्ही क्षणों में यवनों ने नवद्वीप पर हमला कर देते हैं और पुरे नवद्वीप को लुटते हैं । हेमचन्द्र से यह देखा नहीं जाता तो वो नागरिको की रक्षा करना शुरू करते हैं। इसी क्रम में वो के झोपडी में घुसते है जहा एक नागरिक घायल होता है वो आपने घाव के लिए एक स्त्री पर इलज़ाम लगाता है। हेमचन्द्र उस से पूरी बात सुनता है तो पता चलता है की वो व्योमकेश है और उसने मृणालिनी पर झूठा इलज़ाम लगाया था। हेमचन्द्र को इस बात का पता चलते ही वो दौड़कर मृणालिनी के पास जाता है और उस से माफ़ी मांगता है। मृणालिनी उसे सहिर्दय से माफ़ कर देती है। फिर माधवाचार्य को हेमचन्द्र यह बताता है की मृणालिनी से उसका विवाह बहुत पूर्व मथुरा में ही हो गया था। इस प्रकार अब हेमचन्द्र और मृणालिनी एक हो गए।
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मेरी समीक्षा
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कहानी में और भी कई पात्र है जिनका मैंने यहाँ कोई जिक्र नहीं किया क्यूंकि कहानी के मुख्य आधार इन दो किरदारों पर ही टिका है। इस कहानी में आपको प्रेम, धैर्य, बलिदान, सच्चाई, झूठ, षड़यंत्र, राजनीती, युद्ध इन सभी घटनाओ से रूबरू होने का मौका मिलेगा। मुझे इस कहानी में "गिरिजया" नाम की कथानक बहुत अछि लगी। बंकिम दा ने उसके द्वारा जो भी गीत गवाए सभी बहुत ही सुन्दर थे। हिंदी अनुवाद में थोड़ी समस्या जरुर है। लेकिन अंतत: यह एक सुन्दर और सुदृढ़ कहानी है। बंकिम दा ने कहानी के पत्रों को बहुत ही मजबूती से पेश किया है। उसी प्रकार कहानी के पत्रों ने भी इस कहानी को आपना पूर्ण दिया है। मुगलों द्वारा किसी राज्य को जीतना और पुरे शहर में उत्पात मचाना इस पर बंकिम दा बहुत ही सुन्दर प्रकार से प्रकाश डाला है। लगभग २-३ ऐसे अनुच्छेद है बड़े बड़े जिनमे आप मुगलों द्वारा किये गए अत्याचार को देख सकते हैं। आपको यह सारांश कैसा लगा कृपया जरुर बताये।
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विनीत
राजीव रोशन -
There are two reasons for buying this book, one is a personal reason which I cannot tell in front of everyone for security reasons and the second reason is that after reading Anandamath by Bankim Chandra Chatterjee, I wanted to read more of his works and I liked this book very much. The development of the story is as intense as Leo Tolstoy's books, I also experienced the same level of tension in Anna Karenina, so you can guess how good the drama is in this book! The characters are very powerful and their personality is equally amazing, I liked every character equally, Bankim Chandra Chatterjee has created all kinds of characters, not every character in this book is serious all the time, sometimes you will laugh, sometimes you will wait biting your nails to get the answers to your questions, and it may also happen that the reader gets emotional due to the level of dedication shown by some characters.
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బంకించంద్ర చటర్జీ గారి రచనను తెలుగులో చక్కగా అనువాదం చేయటం జరిగినా చాలావరకు గ్రాంధిక భాష వల్ల నాకు పుస్తకం చదవటానికి సమయం పట్టింది. అప్పటి సామాజిక పరిస్థితులు ఇతర అంశాలు బోధ పడ్డాయి.
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এটা একটা সুপাঠ্য উপন্যাস। বখতিয়ার খিলজির বাংলা আক্রমণের সময়কালে উপর ভিত্তি রচিত একটি রোমান্টিক ���পন্যাস এটি। প্রেম আর যুদ্ধের মতো লেখা হিট করার দুটো উপাদান উপস্থিত।
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अजीब सा है और काफ़ी धीमी गति से बढ़ता है
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হিন্দু জাতীয়তাবাদ আর যবন (মুসলিম) বিদ্বেষ।